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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।

अथवा
'डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।' इस कथन की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

डा. रामकुमार वर्मा बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार हैं। वे कवि, नाटककार और समीक्षक के रूप में हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। छायावादी कवियों में वर्मा त्रयी (महादेवी वर्मा, भगवतीचरण वर्मा और रामकुमार वर्मा) प्रसिद्ध रही। कलान्तर में रामकुमार वर्मा नाटक के क्षेत्र में आ गए जिस प्रकार भगवतीचरण वर्मा उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी में एकांकी की अवतारणा का श्रेय डा. रामकुमार वर्मा को ही है। उन्होंने अपनी रोमांटिक कल्पना के आधार पर सन् 1930 ई. में 'बादल की मृत्यु एकांकी लिखा। इस प्रकार उन्होंने हिन्दी में एकांकी विद्या का प्रवर्तन किया। उनके एकांकी पाश्चात्य शैली से युक्त नया संविधान लेकर चलते हैं। परन्तु उनमें भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का बोध एवं मानवीय मूल्यों का आग्रह होता है। उनका संवाद कौशल दर्शनीय है। उनमें भावात्मक सरसता के साथ व्यंजना का अद्भुत सौन्दर्य है। उन्होनें एकांकी के रूप-विधान के सम्बन्ध में कहा है "मेरे सामने एकांकी नाटक की भावना वैसी ही है जैसी एक तितली फूल पर बैठकर उड़ जाए। उसकी घटना वस्तु से जीवन मनोरंजन के साथ निखरे हुए रूप में आ जाए। नाटक को समझने में न तो प्रयास की ही आवश्यकता हो और न थकावट की। संक्षेप में जीवन का पृष्ठ पल उलट जाए और उसको उलटाते हुए आपके मुख पर संतोष और सुख हो। यह कबीर द्वारा इंगित 'घूँघट का पट है जिसके खोलने पर राम मिल जाते हैं। यह तीव्र अनुभूति सत्य के यथार्थ या आदर्श को उसी प्रकार छिपाये रखती है, जैसे हंसी या आँसू जीवन के सुख और दुःख के समस्त संसार को अपने में लीन किए रहते हैं। वर्मा जी की एकांकी की इस धारणा से स्पष्ट है कि उन्होंने अपने एकांकियों में गहन बौद्धिकता और वीभत्स यथार्थ को स्थान नहीं दिया। परन्तु वे जीवन के यथार्थ और सामाजिक बोध से कटे नहीं हैं। 'पृथ्वी का स्वर्ग' एकांकी वर्तमान सामाजिक विषमता पर गहरी चोट करता है परन्तु वर्मा मूलतः आदर्शवादी नाटककार हैं।

वर्मा जी के समक्ष प्रमुख प्रश्न एकांकी के रूप विन्यास और उसे अभिनयात्मक स्वरूप प्रदान करना था। उन्होंने आधुनिक एकांकी का स्वरूप निर्माण करके इस क्षेत्र में पथ प्रदर्शन किया। उनका 'बादल की मृत्यु' एकांकी हिन्दी का सर्वप्रथम एकांकी है, जिसमें पाश्चात्य टेकनीक का आश्रय लेकर यूरोप की मेटरविंक का रूपक पद्धति पर भावात्मक मानवीकरण का नया प्रयोग किया गया। इसमें वर्मा जी ने मनोविज्ञान और संघर्ष को छोड़कर जीवन का महान् अत्यन्त संक्षिप्त और ज्वलंत रूप में उपस्थित किया। इसी प्रकार उन्होंने हिन्दी में आधुनिक ढंग की एकांकी लिखने का मार्ग प्रशस्त किया। पाश्चात्य शैली पर अभिनयात्मक एकांकी की सर्जना करके वर्मा जी ने एकांकी विद्या को लोकभूमि पर प्रतिष्ठित किया। इसके लिए उन्हें पर्याप्त श्रम भी करना पड़ा। यहाँ तक कि 'परीक्षा' एकांकी में उन्होंने मंचीय प्रबन्ध का चित्र भी दिया। वर्मा जी ने स्पष्ट किया कि एकांकी नाटक का संक्षिप्त रूपान्तर नहीं है, उसकी अपनी स्वतंत्र सत्ता और स्वतंत्र कला विधान है। एकांकी की वस्तु के सम्बन्ध में वर्मा जी का कथन है- "जीवन की प्रमुख संवेदना को लिए हुए एक ही पात्र या एक ही परिस्थिति बादलों की भांति नीचे से उठकर घटनाओं के झोंके से ऊपर जाकर चन्द्र और सूर्य को ढक ले और चरम सीमा की विद्युत से आलोकित होकर सत्य की बूँदों में बरस पड़े यही एकांकीकार का कौशल है।" एकांकीकार आद्योपान्त कथा का वर्णन नहीं करता। एकांकी की कथा तब आरम्भ होती है जब आधी बीत चुकी होती है। इस आरम्भिक पूर्णता के लिए एकांकीकार किसी पात्र की स्मृति संचार से अतीत का कथा सूत्र समेट लेता है। वर्मा जी ने अपने एकांकी 'पृथ्वीराज की आँखें' में ऐसा ही किया है। इसी प्रकार विभिन्न एकांकियों के माध्यम से वर्मा जी ने आधुनिक एकांकी की संरचना और उससे सम्बद्ध विशिष्टताओं को उजागर किया है।

जहाँ तक कथ्य का प्रश्न है, वर्मा जी ने विविध विषयों से सम्बन्धित एकांकी लिखे हैं। इनमें ऐतिहासिक, सामाजिक, हास्यरसात्मक, पौराणिक, राष्ट्रीय आदि एकांकी सम्मिलित हैं। प्रधानता ऐतिहासिक और सामाजिक एकांकियों की है। वर्मा जी को सर्वाधिक सफलता ऐतिहासिक एकांकियों में मिली है। इनके लेखन में उनका गहन अध्ययन और अनुसन्धान स्पष्ट झलकता है। इनमें इतिहास के साथ कल्पना का समायोजन बहुत अच्छा हुआ है। पृथ्वीराज की आँखे', 'प्रतिशोध', 'तैमूर की हार', 'औरंगजेब की आखिरी रात आदि एकांकी इतिहास के साथ कल्पना के समन्वय का सुन्दर स्वरूप उपस्थित करते हैं। वर्मा जी की प्रायः सभी एकांकियों में आदर्शवादिता का प्रभाव दिखाई देता है। परन्तु इसमें सांस्कृतिक मनोविज्ञान और अंतर्संघर्ष की कमी नहीं है। इसके कारण ये एकांकी मात्र सोद्देश्य फ्रेम बनकर नहीं रह जाते। वर्मा जी दुर्बल पात्रों को आदर्श की ओर इस प्रकार मोड़ते हैं कि वह अस्वाभाविक प्रतीत न हों। जहाँ ऐसा सम्भव नहीं हो पाता, वहाँ वे उस पात्र का ऐसा अन्त करते हैं कि उसका समस्त कलंक घुलता हुआ दिखाई दे। वर्मा जी के एकांकी प्रायः दुखान्त हैं। इनमें पाठकों पर मार्मिक प्रभाव पड़ता है और वे पाठकों को सोचने की प्रेरणा भी देते हैं। एकांकियों का दुखान्त होना वर्मा जी पर पाश्चात्य प्रभाव का सूचक है, परन्तु वर्मा जी ने उनमें आदर्शवाद का पुट देकर आशावादी एवं सकारात्मक दृष्टिकोण से संयुक्त कर दिया है। उनके सामाजिक एकांकियों में भी आदर्शोन्मुखी होने की प्रेरणा है। 'रेशमी टाई', 'एक्ट्रैस', 'परीक्षा' आदि एकांकियों की नायिकाएँ आदर्शोन्मुख होती हैं। वर्मा जी के एकांकियों में जीवन के उत्थान- पतन का संजीव चित्रण हुआ है।

वर्मा जी के एकांकियों की सबसे बड़ी विशेषता है उनमें संकलन त्रय का कठोरता से परिपालन। उनमें चरित्र वस्तु स्थिति और घटना का दिग्दर्शन एक ही दृश्य में करा देने की क्षमता है। स्वाभाविकता के साथ ऐसा नाटकीय संविधान हिन्दी में प्रथम बार वर्मा जी के द्वारा ही प्रतिष्ठित हुआ है। इसी के साथ रंगमंचीय आवश्यकताओं की परिपूर्णता वर्मा जी की एकांकी कला को लोकमानस के साथ जोड़ती है। वर्मा जी के संवादों की भाषा स्वच्छ प्रवाहमयी और कवित्वपूर्ण है। भावात्मक सरसता और रोचकता वर्मा जी के एकांकियों का विशेष गुण है।

आगे चलकर हिन्दी एकांकी अन्य विद्याओं की भांति वर्तमान जीवन के संत्रास की अभिव्यक्ति का माध्यम बना। एकांकीकारों की दृष्टि अधिक यथार्थवादी होती गयी और उनके एकांकियों में सहज भावुकता के स्थान पर बौद्धिक सोच का प्राधान्य हो गया। वर्मा जी के एकांकियों की सफलता इस बात में है कि उनमें आधुनिक टेकनीक के पथ-प्रदर्शन के साथ जिस सहजता से एकांकी के तत्वों, जैसे वस्तु चरित्र, संवाद, संकलन त्रय, मंचीय विधान आदि का समायोजन किया गया है, वे अपने आप में अद्वितीय हैं।

वर्मा जी के एकांकियों के कथ्य में विविधता है परन्तु अपनी आस्था और आदर्शवादिता के कारण वे ऐतिहासिक एकांकियों के लेखन में विशेष सफल हुए हैं। इन एकांकियों में इतिहास सम्मतता तो है ही, उस युग विशेष का सम्पूर्ण परिवेश भी अत्यंत जीवंतता से साकार हुआ है। भारतीय सांस्कृतिक गरिमा के साथ वर्मा जी की इतिहास को देखने की एक व्यापक दृष्टि है। यह दृष्टि इनके एकांकियों को व्यापक मानवीय संवेदना के धरातल पर प्रतिष्ठित करती है। उदाहरणार्थ, 'औरंगजेब की आखिरी रात एकांकी में वर्मा जी ने औरंगजेब के जीवन पर्यन्त किए गए क्रूर कृत्यों के प्रति पश्चाताप का जिस मनोवैज्ञानिक स्वाभाविकता से अंकन किया है, वह उसके जीवन का उज्जवल पृष्ठ बन जाता है। वर्मा जी की दृष्टि सर्वत्र ऐसी ही उज्जवलता की तलाश करती है, पाठकों को अंधेरी गलियों में भटकाकर गुमराह नहीं करती। इसमें उनका मानवता पर सहज विश्वास झलकता है। उनके एकांकी किन्हीं संकीर्णवादी अथवा राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिपादन नहीं करते। वे व्यापक मानवता का साक्षात्कार करते हैं। उनमें अनुभूति की प्रधानता है।

जयशंकर प्रसाद के एक घूँट' (सन् 1930 ई.) एकांकी को हिन्दी का प्रथम आधुनिक एकांकी स्वीकार करने का बहुत से विद्वानों ने आग्रह किया है। यदि इसे मान भी लिया जाए, तो आधुनिक एकांकी के विकास का श्रेय डा. रामकुमार वर्मा को ही जाता है क्योंकि प्रसाद जी एकांकियों की ओर ध्यान न देकर नाटकों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया जबकि वर्मा जी ने का प्रथम आधुनिक एकांकी 'बादल की मृत्यु' भी सन् 1930 में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् उनके अनेक एकांकी संग्रह प्रकाश में आए। 'पृथ्वीराज की आँखे' (1937), 'रेशमी टाई' (1939), 'चारुमित्रा' (1943), 'विभूति' (1943), 'सप्त किरण' (1947), 'रूप-रंग (1948), 'कौमुदी महोत्सव' (1949), ध्रुव तारिका' (1950), 'ऋतुराज' (1952), 'रजत- रश्मि' (1952), दीपदान' (1956), 'काम कंदला' (1956), 'बापू' (1956). 'इन्द्रधनुष' (1957), 'रिमझिम (1957) आदि एकांकी संग्रह की रचना करके धर्मा जी ने आधुनिक हिन्दी एकांकी विद्या का संवर्धन किया और भविष्य का दिशा-निर्देश भी किया। हिन्दी के एकाकीकारों में प्रथम प्रकाश स्तम्भ के रूप में वर्मा जी ने जो आलोक विकीर्ण किया, उसे कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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